
बहुत साल पेहले, श्यामपुर राज्य के माहराज श्याम बहुत ही निर्दई थे । वह साधुओ को अपने राज्य में घुसने नही देते । वाह की जनता तो राजा के बारे में यह तक बाते करती थी की “ यह राजा नही यह तो हैवान है ! ” । राजा का यह व्यव्हार एक मंत्री को पसंद नही आया तो उनहोने एक तरकीब लगाई । मंत्री जी ने महराज से दो दिन की छुट्टि ले ली । जब वह दरबार वापस लौटे तो साथ में लाए एक बैलगाडी जिस्के अंदर एक साधू छुपा था । इस्के बाद मंत्री जी ने राजा को नमस्कार किया और तभी दरबार के द्वार के सिपाहीयो को कुछ जन्ता ने बंदी बना लिया । फिर दरबार में मंत्री ने काहा “माहराज आपको कुछ दिखाना चाह्ता हु, आग्या है ?” माहराज ने स्वीकार किया और मंत्री ने बैलगाडी से साधू को निकाला, राजा साधु देख हो गए आग बबूला । फिर मुनिवर को भी आगया गुस्सा उन्होने कहा “कि राज्म तुम बहुत निर्दयि हो इस्लिये आज से तुम्हे और तुम्हारे राज्य को एक शाप मिल्ता है कि तुम्हारे राज्य में घोर अकाल आएगा तब तक जब तक यहॅ अन्न का एक दाना और तुम्हारी पूंजी का आखिरी सिक्का न बचे और उसे तुम प्रभु को सच्ची भक्ती से न चढाओ ।“
उस घट्ना के एक सप्ताह बाद वही हुआ जो मुनी ने कहा राज्कोश का आखिरि सिक्क और राज्य का आखिरि अन्न फिर राजा को उस्का सबक मिला और वह चीजे उस्ने प्रभू को चडाई ।
सीख- हमे अहंकार को त्याग कर कर्त्व्य पर ध्यान देना चहिये।
PS: My Hindi keyboard is not so sufficient to type the small details like bindus etc. so please bear with me,

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